कस्तूरी कुंडल बसे दोहे का अर्थ एवं व्याख्या

कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि। ऐसे घटी-घटी राम हैं दुनिया जानत नाँहि॥ शब्दार्थ कस्तूरी = सुगन्धित द्रव्य कुंडली = नाभि बसे = बसना, रहना, व्याप्त बन – वन, जंगल घटी-घटी = कण-कण इस दोहे की रचना कबीर दास जी ने की है। कस्तूरी कुंडल बसे दोहे का व्याख्या इस दोहे के माध्यम से …

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