विद्यालय में लॉकडाउन के बाद पहला दिन – लॉकडाउन पर निबंध

इस पोस्ट में हम लॉकडाउन पर निबंध ( Lockdown par nibandh ) कैसे लिखे।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कोरोना महामारी के बाद विद्यालय,कार्यालय आदि तमाम संस्थानों को बंद कर दिया गया था।

इसमें विद्यार्थियों की पढ़ाई बाधित हुई थी। लंबे अंतराल के बाद विद्यालय खोलने पर विद्यार्थी विद्यालय जाकर भी कुछ अलग महसूस कर रहे थे। भय का माहौल उनके दिल में व्याप्त था। एक विद्यार्थी के नाते आपने क्या महसूस किया होगा इसे निम्न लेख से स्पष्ट किया जा सकता है।

विद्यालय में लॉकडाउन के बाद पहला दिन – लॉकडाउन पर निबंध

लॉकडाउन क्या है ?

लॉकडाउन अर्थात पूर्णपाबंदी भारत सरकार ने कोरोनावायरस को ध्यान में रखते हुए पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की थी। इसके प्रभाव से सभी संस्थान बंद कर दिए गए थे।

  • सार्वजनिक स्थल पर घूमना या घर से बाहर निकलना तक बंद हो गया था।
  • विद्यार्थियों की पढ़ाई का एक माध्यम विद्यालय होता है।
  • लॉकडाउन के प्रभाव से विद्यार्थी अपने घर में ही बंद हो गया था।
  • उसकी पढ़ाई लिखाई का एकमात्र साधन ऑनलाइन था।
  • कई विद्यार्थियों के सामने ऑनलाइन की भी समस्या थी क्योंकि उनके पास संसाधन नहीं थे।
  • लॉकडाउन का असर भारत ने अधिक मार्मिक रूप से देखा था।
  • व्यवसायिक प्रतिष्ठान बंद होने से मजदूर तबका बहुत निराश हुआ।

उनकी आय का स्रोत बंद हो गया , मकान मालिक ने घर खाली करने का फरमान सुना दिया। खाने के लिए कोई माध्यम नहीं किसी तरह से गुजारा होता रहा।

यह सभी मार्मिक स्थितियां लॉकडाउन में भारत ने बेहद ही करीबी से देखा है।

लॉकडाउन करने के पीछे सरकार की कोई अन्य मंशा नहीं थी , बल्कि कोरोना महामारी को फैलने से रोकना था। जिसका प्रभाव सकारात्मक रूप से देखने को भी मिला।

किंतु सार्वजनिक स्थान पर लोगों की लापरवाही ने लॉकडाउन को कमजोर बनाया।

सतर्कता

लॉकडाउन के बाद जैसे ही विद्यालय खुला मन में एक उत्साह और नया उमंग था। अपने पुराने साथियों को आज मिलने का दिन था। मगर घर से निकलने से पूर्व ही इतनी हिदायतें मिली की मन में एक दहशत का माहौल व्याप्त था।

विद्यालय पहुंचकर इस दृश्य को मैंने साक्षात आंखों से देखा।

विद्यालय में लॉकडाउन से पूर्व जिस प्रकार का माहौल हुआ करता था. आज उसके बिल्कुल विपरीत था।

सभी विद्यार्थियों ,शिक्षकों तथा सभी लोगों ने मास्क पहना हुआ था। कई चेहरे तो मास्क के कारण पहचान में ही नहीं आ रहे थे। अपने मित्रों से यह कैसा मिलना था ,किंतु यह महामारी इतनी खतरनाक है कि सतर्कता का पालन तो करना ही था। इसी का परिणाम था कि सभी मास्क पहने हुए थे और सैनिटाइजर की डिब्बी जेब में लिए हुए थे।

विद्यालय में प्रवेश भी दूरी बनाकर दिया गया।

दूरी का पालन

कोरोना महामारी का संक्रमण नजदीक तथा स्पर्श से फैलता है ,इसका वैज्ञानिकों ने अध्ययन कर पता लगाया। इससे बचने के लिए डॉक्टरों तथा वैज्ञानिकों ने यह सलाह दी कि मास्क तथा दूरी का पालन कर उसके संक्रमण से काफी हद तक बचा जा सकता है।

इस लिए सरकार ने पूर्ण लॉकडाउन किया था।

विद्यालय खुलने पर भी इस नियम का पालन करना अनिवार्य था।

विद्यालय के पहले दिन भी इसी प्रकार के नियम का पालन किया जा रहा था।

कोई भी व्यक्ति विद्यार्थी शिक्षक छः फीट की दूरी का लगभग नियम पालन कर रहे थे।

यह देखने में एक अनोखा था क्योंकि आज से पूर्व इस प्रकार विद्यालय में नहीं देखा गया था। यह नियम अच्छा भी है, इससे संक्रमण से बचाव हो सकता है। किंतु यह बुरा विद्यार्थी के लिए इसलिए है कि वह अपने दोस्तों के साथ खुलकर अपने समय को नहीं जी सकते।

यह बंधन विद्यार्थियों के जीवन में बोरियत की अनुभूति कराता है

मास्क की अनिवार्यता

व्यक्ति कुछ बोलता है या खाँसता,छींकता है तो उसके मुख से अनेकों करोड़ों की संख्या में वैक्टीरिया बाहर निकलता है। उसके निकट रहने वाले व्यक्ति पर यह विपरीत प्रभाव डालता है।

कोरोना संक्रमण इस माध्यम से बेहद तीव्र गति से फ़ैल रहा था

इसलिए सरकार ने मास्क की अनिवार्यता तय की थी।

आज भी कहे तो मास्क ना पहनने पर भारी जुर्माना भरना पड़ता है।

यह सरकार का सराहनीय कदम है।

किंतु विद्यार्थी जो विद्यालय आने-जाने तथा विद्यालय में समय गुजारने तक इस मास्क को पहन कर बेचैनी महसूस कर रहे थे। स्वयं में भी इस बेचैनी को कह रहा था। क्योंकि मास्क इतने लंबे समय तक पहनना किसी भी स्वस्थ मनुष्य को अस्वस्थ महसूस कराने के लिए काफी है।

विद्यालय के पहले दिन सभी मास्क में अलग ही नजर आ रहे थे।

कितने चेहरे मास्क के कारण पहचान में भी नहीं आ रहे थे।

भय का माहौल

विद्यालय खुलने के पहले दिन सभी लोगों में भय का माहौल व्याप्त था। शिक्षक दूरी बनाने और मास्क पहनने के लिए निरंतर घोषणा कर रहे थे।

विद्यार्थी इन नियमों का पालन कर रहे थे क्योंकि उन्हें घर से भी यही निर्देश था।

टेलीविजन तथा आसपास के समाज में भी इसकी अनिवार्यता के लिए चर्चे हुआ करते थे।

इसकी भयावह स्थिति को सभी लोगों ने बारीकी से देखा था।

आसपास किस प्रकार लॉकडाउन का दुष्प्रभाव पड़ा था।

अस्पतालों में मरीजों की स्थिति आदि देखकर हृदय में भय तथा।

इसी भय के माहौल में आकर पढ़ाई करना एक चुनौती थी।

किंतु शिक्षकों तथा सरकार की व्यवस्था के कारण यह भय थोड़ा सा कम हुआ और पढ़ाई में धीरे-धीरे आनंद की अनुभूति होने लगी। दिन के अंत में ऐसा लगा कुछ ही दिनों में सभी सामान्य हो जाएगा और विद्यालय भी सामान्य गति पुनः प्राप्त कर सकेगा

खेलकूद पर पाबंदी

विद्यार्थियों के जीवन में विद्यालय की अहम भूमिका होती है ,जहां वह अपने दोस्तों के साथ अपने जीवन के अनमोल समय को व्यतीत करता है।

जिसमें खेलकूद, पढ़ाई-लिखाई सब होता है।

आज के समय में विद्यार्थियों के लिए खेलकूद अहम योगदान रखता है।

विद्यालय में खेलकूद की पाबंदी विद्यार्थियों के लिए बोरियत का विषय होता है।

क्योंकि यहां योगा तथा विभिन्न प्रकार के खेलकूद करना वह भी अपने समकक्षियों के साथ अपने दोस्तों के साथ। सरकार ने कोरोना संक्रमण को ध्यान में रखते हुए खेलकूद पर विद्यालय में पाबंदी लगाने का जो फैसला किया और विद्यार्थियों के लिए सुरक्षा की दृष्टि से सही है , किंतु उनके मनोरंजन की दृष्टि से बिल्कुल गलत।

विद्यालय में खेलकूद और मस्ती विद्यार्थी ना करें तो विद्यालय, विद्यालय ना रहता है।

इस पाबंदी ने विद्यालय की गतिविधि को निरस बना दिया था।

पेयजल से दूरी

विद्यालय का समय लगभग 5 से 6 घंटे कम से कम प्रति दिन का होता है। जिसमें विद्यार्थी अपने विद्यालय में रहता है। इस दौरान उसे पानी पीने की आवश्यकता भी पड़ती है , वैसे तो सभी विद्यार्थियों को निर्देश दिया गया था अपने घर से पानी की बोतल लेकर आए।

किंतु समस्या यह है कि विद्यार्थी पानी कितना लेकर आए।

कई विद्यार्थियों के साथ या समस्या देखी गई ,उनका पानी जल्द ही खत्म हो गया।

उसके बाद वह पेयजल के स्थान पर जाने से भी संकोच कर रहे थे।

क्योंकि वह सार्वजनिक स्थान होता है जिसमें सभी का हाथ लगता रहता है।

ऐसे में संक्रमण तीव्र गति से फैलता है ,इसलिए कितने ही विद्यार्थियों ने पेयजल से दूरी बनाया और प्यासे रहकर भी अपना विद्यालय समय गुजारा।

शौचालय का सावधानी से प्रयोग

विद्यालय का शौचालय सार्वजनिक स्थलों में से एक होता है, जिसमें विद्यालय के सभी विद्यार्थी तथा अन्य लोग जाते हैं।

विद्यालय के पहले दिन यह देखा गया कि सभी शौचालय जाने से दूरी बना रहे थे।

जो शौचालय जा भी रहे थे वह पानी से हाथ धोने में डर महसूस कर रहे थे।

विद्यालय तथा प्रशासन ने यह अच्छा किया था कि जगह-जगह सैनिटाइजर की व्यवस्था की गई थी। जिसका संचालन पैरों के स्पर्श से हो रहा था ,अर्थात उसे हाथों से छूने की आवश्यकता नहीं थी।

भोजन को साझा करने मैं डर

विद्यालय एक ऐसा स्थान होता है जहां विद्यार्थी निर्भीक होकर अपने दोस्तों के साथ भोजन साझा करता है। यहां उनकी दोस्ती और प्रगाढ़ बनती है। किंतु ऐसी स्थिति में एक-दूसरे के समीप आना भी मना था तो ऐसी स्थिति में भोजन साझा करने का कोई प्रश्न ही नहीं होता।

यह विद्यालय के पहले दिन सबसे बुरा अनुभव में से एक था।

जहां अपने दोस्तों के साथ दूर बैठकर भोजन करना था वह भी बिना बात किए।

उपसंहार

यह महामारी एक आपदा के रूप में मानव जीवन में आई है ,इससे लोगों ने चुनौती मानकर स्वीकार किया है और इसे डटकर सामना करने का मन बना लिया है। चाहे वह किसी भी स्तर का व्यक्ति हो यहां तक कि विद्यार्थियों ने भी इस चुनौती को स्वीकार करते हुए सतर्कता के साथ सामना कर रहे हैं।

विद्यार्थी जीवन में विद्यालय का अहम योगदान रहता है।

यह उनके अविस्मरणीय यादों में से एक होता है।

इन यादों को धुंधली करने का प्रयास इस महामारी में होता रहा।

किंतु विद्यार्थी ऐसे में भी अपने लिए सतर्कता के साथ आनंद की अनुभूति कर लेते हैं।

उपर्युक्त बिंदुओं पर हमने चर्चा किया जिसमें कड़े नियम से लेकर विद्यार्थियों की स्थिति आदि को भी निश्चित किया गया जो विद्यार्थियों के लिए एक बुरा अनुभव है। इसे विद्यार्थियों ने शिक्षा में बाधा नहीं बनने दिया और खुले मन से अपने शिक्षकों तथा साथियों के साथ अपने विचारों आदि का संप्रेषण किया।

अपने पढ़ाई को सुचारू रूप से जारी रखा। चाहे वह घर में ही रहकर पढ़ना क्यों ना हो।

वहां आधुनिक तकनीकों के माध्यम से सभी एक-दूसरे से जुड़े रहे।

यही उनके साहस को बढ़ाता है।

विद्यार्थियों तथा शिक्षकों के निरंतर संपर्क में रहने से विद्यार्थियों में जो सकारात्मक ऊर्जा का प्रचार हुआ वह लॉकडाउन में अतुलनीय,अकल्पनीय है।

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