माली आवत देखकर कलियन करे पुकार में कौन सा अलंकार है

माली आवत देखकर , कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥

व्याख्या – उपर्युक्त दोहा कबीर दास की दोहा वली से अवतरित है ,जिसमें कलियां आपस में बात करते हुए प्रतीत हो रही है जो जीवन के रहस्य की ओर संकेत भी कर रही है। जीवन-मृत्यु इस पृथ्वी पर चलता रहता है कलियां उन्हीं जीवन देने वाली और जीवन को हरण करने वाली शक्ति की ओर संकेत कर रही है।

माली अर्थात यमराज की ओर संकेत किया गया है जो समय-समय पर आकर फूल अर्थात वृद्धावस्था की स्थिति में हरण कर लेता है। यहां कबीरदास के रहस्यवादी दृष्टि का भी उद्घाटन होता है। वह समाज सुधारक के नाम पर प्रसिद्ध थे किंतु उनकी रहस्यवादी दृष्टि को भी उनके साहित्य में देखा जा सकता है।

प्रश्न – माली आवत देखकर कलियन करे पुकार में कौन अलंकार है?

उत्तर – अन्योक्ति अलंकार

इस अलंकार को अप्रस्तुत प्रशंसा भी कहा जाता है।

इस अलंकार की विशेषता यह है कि इसमें अप्रस्तुत रूप को आधार मानकर या दूसरे को माध्यम मानकर बात कही जाती है।

अर्थात कहते किसी और के लिए हैं इशारा किसी और की तरफ होता है।

इस पंक्ति में भी ऐसा ही है माली अर्थात जीवन प्रदान करने वाला परमात्मा है।

इस पंक्ति में जीवन और मृत्यु के बीच के रहस्य को बताने की कोशिश की गई है।

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निष्कर्ष

अन्योक्ति अलंकार के अंतर्गत दूसरे को माध्यम बनाकर अपनी बात को पूरा किया जाता है। इस अलंकार की यही विशेषता है। माली आवत देखकर कलियन करे पुकार का संबंध अन्योक्ति अलंकार से इसी कारण जुड़ जाता है।

यहां कबीर दास के रहस्यवादी दृष्टिकोण का भी उद्घाटन होता है। कबीर इस समाज को संदेश देना चाहते हैं कि कोई भी इस पृथ्वी पर हमेशा के लिए नहीं आया है, जो यहां पर आया है वह एक दिन जरूर यहां से जाएगा क्योंकि यही नियति है और यही सत्य है। इसलिए मानव को कभी अहंकार नहीं करना चाहिए और सदैव विनम्रता की भावना उसे रखनी चाहिए।

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1 thought on “माली आवत देखकर कलियन करे पुकार में कौन सा अलंकार है”

  1. मैत्री का निर्वाह मनमोहन द्वारा रचित hindi bhavarth

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